लिखते-लिखते कब और कैसे लिखने लगा पता ही नहीं चला | जटिल व्यक्तित्व नहीं है इसलिए जटिल शब्द भी प्रयोग नहीं करता | पर जीवन को समझने के लिए उसे हर नजरिये से देखने की कोशिश जरूर रहती है | हालाँकि कुछ लोगों को हमेशा समस्या रही है मेरे इस व्यक्तित्व से, But who cares. और इसी सोच के चलते मैं आज लिखने बैठा हूँ |
मैं लिखना तो 24 मार्च से चाह रहा था पर लिख नहीं पा रहा था, क्यूंकि वो दिन मेरे लिए बहुत ही यादगार और बड़ा दिन था | इसी से ठीक 2 महीने पहले हमने 24 जनवरी को राजीव गाँधी दक्षिणी परिसर में Eco One नाम के एक Eco club की स्थपाना की थी, जिसका श्रेय मैं देबदित्यो सिन्हा को देना चाहता हूँ | और ठीक दो महीने बाद हमें कुलपति कार्यालय से सूचना मिली कि कुलपति महोदय Eco One के संरक्षक बनने के लिए तैयार हो गए हैं | ये सही मायनों में हमारे लिए एक बड़ी खबर थी | इससे पहले हमने कई अभियान किये थे जैसे विश्व नम भूमि दिवस पर विन्ढम फाल की सफाई या फिर परिसर की सफाई का अभियान |
31 मार्च को भी हमने एक और अभियान किया | मौका था Earth Hour का, इस अवसर पर हमने कैंडल मार्च और स्विच डाउन अभियान चलाया जिसमें आज फिर उम्मीद से ज़्यादा उत्साह और उपस्थिति देखने को मिली | और इसे देखने के बाद उनके मुंह तो हमेशा के लिए बन्द हो जाते जो ये कहते फिरते हैं की ये नयी पीढ़ी बेकार हो गयी है | अभियान सफल रहा और राजीव गाँधी दक्षिणी परिसर के इतिहास में हमने फिर कुछ नया और सराहनीय काम किया | ज़ाहिर सी बात है सबका सहयोग मिला हमें पर फिर भी विन्ध्याचल छात्रावास ने फिर साबित किया कि वो सोचते हैं अपनी धरती माँ के बारे में, अपने पर्यावरण के बारे में और अपने परिसर के बारे में | मै धन्यवाद देना चाहूँगा न्यू ब्वायज हॉस्टल को जो परिसर का सबसे छोटा छात्रावास होने के बावजूद विन्ध्याचल छात्रावास को हमेशा चुनौती देता रहा है (उपस्थिति के मामले में), और इसलिए न्यू ब्वायज हॉस्टल के छात्र वाकई काबिले तारीफ़ हैं | पर शिवालिक छात्रावास ने हमेशा की तरह इस बार भी निराश ही किया हमें, आज भी सबसे कम सहभागिता रही इस इस छात्रावास से | खैर जो भी हो, जो आये वो बधाई के पात्र हैं | और मैं अपने उन सभी आलोचकों को भी धन्यवाद देना चाहता हूँ, जिनके चलते मैं लिख रहा हूँ | जी हाँ मैं इनसे इतना प्रेरित हो गया हूँ की आज लिखने बैठ गया | हकीकत में मेरा सामना भी कुछ दिन पहले ही हुआ इन महान आत्माओं से, पर एक समस्या है | समस्या ये है की मैं इनकी महानता को समझ नहीं पा रहा , कितने महान लोग हैं ये ? इन्हें देख के मेरे मन में एक ही ख़याल आता है , और वो ये की इन्हें तो देश की सीमा पर तैनात होना चाहिए, ये यहाँ क्या कर रहें हैं? मैं ऐसा इस लिए सोचता हूँ क्यूंकि ये है ही इतने ज्वलनशील | इनकी ज्वलनशीलता का आलम ये है कि ये एक सही इन्सान को गलत साबित करने के लिए सारी दुनिया को गलत करार देतें हैं | इन्हें देख कर तो मुझे बस यही लाइन याद आती है,
“ बुलंदी पर पहुँचने की तमन्ना भी अजब शय है,जिन्हें उड़ना नहीं आता वो भी फडफडाते हैं | “
खैर इन्ही के प्रेरणास्वरुप मैं इतना लिख सका | और आखिर में मैं धन्यवाद देना चाहता हूँ डा० आशीष सिंह सर का जिन्होंने अपना इतना ज्यादा सहयोग दिया इस अभियान में और वो सपरिवार उपस्थित रहे | मैं शिवालिक छात्रावास के संरक्षक विजय कृष्णा सर को भी धन्यवाद देना चाहता हूँ की वो अभियान में उपस्थित रहे और छात्रों को प्रोत्साहित किया |
अन्त में ये दो लाइनें और बात खत्म,
“ सूरज हूँ जिंदगी की रमक छोड़ जाऊँगा, मैं डूब भी गया तो शफक छोड़ जाऊंगा | “
सह-अध्यक्ष,
इको वन प्रबंधन परिषद
vryyyyyyy effectiveeeeeeeeeeeeeee
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